Thursday, August 21, 2008

भारतीय ओलंपिक अभियान को लगे पंख

बीजिंग। भारत के लिए ओलंपिक में ऐतिहासिक रहे बीस अगस्त के दिन पहलवान सुशील कुमार ने जहां कांस्य पदक हासिल किया, वहीं मुक्केबाज विजेंदर कुमार ने अपने लिए कम से कम कांसे का तमगा सुनिश्चित करके देश के नाम पर रिकार्ड तीन पदक भी पक्के किए। इन दो और पदकों के भारत की झोली में आने से भारतीय ओलंपिक अभियान को सही मायनों में पंख लग गए हैं।
अभिनव बिंद्रा के पहले सप्ताह में स्वर्ण पदक जीतने के बाद 25 वर्षीय सुशील कुमार कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर अचानक सुर्खियों में छा गए जबकि विजेंदर ने भारतीय खेलों के लिए ऐतिहासिक दिन में एक और स्वर्ण पदक की आस जगा दी।
सुशील और विजेंदर ने बीजिंग ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाडि़यों में एक के बाद एक स्पर्धाओं में बाहर होते जाने आ रही निराशा को आज उत्साह में बदल दिया। भारत के लिए कुश्ती स्पर्धा में 56 साल पहले 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में केडी जाधव ने जीता था। इसके बाद सुशील कुमार यह उपलब्धि हासिल करने वाले दूसरे पहलवान बन गए। सुशील और विजेंदर ने जहां देश को गौरवान्वित किया वहीं पदक के एक अन्य दावेदार जितेंदर कुमार अच्छे प्रयासों के बावजूद क्वार्टर फाइनल में हार गए।
बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार द्वारा 56 वर्ष बाद लाया गया कांस्य पदक एक बार फिर से देश में पहलवानी का युग वापस लाने में सहायक होगा। यह कहना है पूर्व ओलंपियन प्रेमनाथ सोनकर, एसएस दहिया व रोशन लाल का। प्रेमनाथ पहलवान ने सुशील को बधाई देते हुए कहा कि जहां इस खेल को लोग बुरी नजर से देखने लगे थे, पर आज उस पर विराम लग गया। उन्होंने कहा कि देश में आज क्रिकेट को ही पूजा जाता है। प्रेमनाथ ने कहा कि आज हर कोई अपने बच्चों को क्रिकेटर बनाना चाहता है। ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण व सुशील ने कांस्य पदक जीतकर इस फिजा को बदलने में कारगर साबित हो सकते हैं। सुशील ने जिस तरह विपक्षी पहलवान को हराया है। इससे वह कोई जिगर वाला पहलवान ही लगता है। उसने अपने जिदारी दांव खेलकर जीत को अपने पक्ष में किया।
प्रेमनाथ ने कहा कि सुशील के पदक से पहलवानी के प्रति एक अलग माहौल पैदा होगा, जो पिछले कुछ वर्षो से कम हो गया था। 56 वर्ष के बाद कुश्ती में पदक आना अपने आप में सुखद अनुभव है। यह कहना था सुशील के अखाडे़ के कोच यशबीर का। उन्होंने कहा कि सुशील जब छत्रसाल अखाड़े पर आए उस दौरान उनकी उम्र मात्र 14 वर्ष थी। 25 वर्ष में उसने यह कमाल दिखाया, इससे साफ है कि इस पहलवान ने काफी मेहनत की होगी। यशबीर ने कहा कि देश को एक सुंदर मौका मिला है। सुशील के पदक से कुश्ती को अपनी पहचान फिर से मिलेगी। पूर्व ओलंपियन एसएस दहिया ने कहा कि बुधवार का दिन भारत के लिए गौरवशाली रहा। उनकी खेल बिरादरी में एक नया पहलवान शामिल हुआ है। 1952 के बाद एक पदक आने के लिए हमारे देशवासी तरस गए थे। हालांकि इसमें कई तकनीकी काम भी शामिल है, पर सुशील ने सतपाल पहलवान या छत्रसाल अखाडे़ का ही नहीं, पूरे देश में पहलवानों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। सुशील के पदक से अब हमारे लिए ओलंपिक के दरवाजे खुले हैं। इसको शुरुआत माना जा सकता है। यह युवाओं को इस खेल की तरफ मोड़ने का काम करेगा। अंतरराष्ट्रीय पहलवान रोशन लाल ने कहा कि केडी जाधव के दौरान की कुश्ती और आज की कुश्ती में काफी अंतर आ चुका है। कई नियम बदल गए हैं। इन सभी को झुठलाते हुए सुनील ने जो कर दिखाया उससे पहलवानों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। 2007 का द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने वाले ओलंपियन जगमिंदर ने कहा कि यह दिन कुश्ती इतिहास में हमेशा याद रहेगा। जाधव के बाद हमें ओलंपिक पदक पाने के लिए जरूर 56 वर्ष लग गए हो, पर अब यह वनवास खत्म हो चुका है। इस जीत के पीछे उसकी शानदार फिटनेस का भी कमाल है। जगत पहलवान ने कहा कि पहलवान अपना परिवार व शरीर तोड़कर बनता है। उसको हमेशा ही पैसे की कमी खलती है, दूसरे खेलों के खिलाड़ियों को प्रायोजक मिलते रहते हैं पर कुश्ती में ऐसा न के बराबर है। सुशील का पदक कार्पोरेट जगत को भी सोचने को मजबूर करेगा।
उधर, ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिए मुक्केबाजी में पहला पदक सुनिश्चित करने वाले तेजतर्रार मुक्केबाज विजेंदर ने सात साल पहले 2001 में जर्मनी में सब जूनियर इंटरनेशनल चैंपियनशिप का स्वर्ण जीतकर ओलंपिक पदक के अपने अभियान की शुरुआत कर दी थी। बीजिंग ओलंपिक के 75 किग्रा भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में इक्वाडोर के मुक्केबाज कार्लोस गोंगोरा को अंकों के आधार पर 9-4 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश करने वाले विजेंदर ने कम से कम कांस्य पदक मिला सुनिश्चित कर लिया है। हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर महिपाल सिंह के यहां 29 अक्तूबर 1985 को जन्में विजेंदर ने मात्र 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतकर अपनी काबीलियत साबित कर दी थी। भिवानी के इस मुक्केबाज को इसके बाद अपने कौशल को निखारने के लिए अपने परिवार से दूर रहना पड़ा और पिछले आठ साल में उनका अधिकतर समय चैंपियनशिप में खेलते हुए या शिविर में ही बीता। विजेंदर के पिता ने कहा कि हम आठ साल से अपने बच्चे से अच्छी तरह नहीं मिल पाएं हैं। अधिकतर उससे फोन पर ही बात होती है। उन्होंने कहा कि हम तो सीधे सादे लोग हैं। मैं ड्राइवरी करता हूं और विजेंदर की मां आज भी गाय भैंस चराने जाती है। विजेंदर ने हमें पहचान दिलाई है। टीवी और मीडिया वाले हमारे घर के बाहर खड़े हैं। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि टीवी पर नजर आऊंगा।
source: www.in.jagarn.com

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